कवितावली
Monday, July 27, 2009
ओट
संग हो सकते थे
तुम.
कोई ओट ही होती
होती कोई अजानी बात.
मैं चूम लेती किसी भी बहाने
मेरे छल, मेरे जीवन प्राण हैं.
Wednesday, July 22, 2009
तुम्हारे साथ
तुम्ही ने कहा था
कि मैंने सोच लिया है रहना तुम्हारे साथ
मैंने शुभ्र आकाश और निर्मल समंदर की सौगंध खाकर कहा
आये हो जिस तरह तुम आंधी और बरसात में
मैं भी दुनिया की हर बाधा को करूँ पार तुम्हारे लिए
तुम्हारे साथ
Friday, July 10, 2009
अंकुरण
वे जो स्वर रुंध गए
उनमे तुम्हारे गीत थे
वे जो सूख गए अक्षर
पी गयी उनको
तुम्हारे तिरस्कार की अग्नि.
प्रिये
नेह बीज पुनः अंकुरित होगा.
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