Sunday, October 10, 2010

कच्ची मिट्टी की खोह

कच्ची मिट्टी की खोह में
प्रिय संग बसाया एक आगार.

नम वायु के झोंके
दीवस के दीप्त मध्याहन
रात्रि की श्याम चादर
ज्यों कोई अश्रु भरी आँखें
अग्नि भरा ह्रदय
और आस रहित जीवन.

मैं अपनी चुप्पी से कहूँ
बाँधे अपना धीर
तुम सुनो पुकार कि आना एक बार.

Sunday, August 15, 2010

तुम्हारे लिए

अध खुले अधर
नमक के समुद्र में
चुनते हुए बिछोह के मोती.

अकस्मात वर्षा के
आगमन की भांति
तुम घेर लो मुझे. मेरे सम्पूर्ण को.

मैं आती हूँ जगत में तुम्हारे लिए
ओ प्रिये.






Wednesday, June 9, 2010

आस



लुढक गया मन का पात्र
बह गया आसव सारा प्रेम का.

सुवास, जल, चांदनी
और तुम्हारे होने की आस ने पी लिया
मेरा अंतस.  

बूँद की तरह फिर उतरो मन के पात्र में.