Sunday, October 10, 2010

कच्ची मिट्टी की खोह

कच्ची मिट्टी की खोह में
प्रिय संग बसाया एक आगार.

नम वायु के झोंके
दीवस के दीप्त मध्याहन
रात्रि की श्याम चादर
ज्यों कोई अश्रु भरी आँखें
अग्नि भरा ह्रदय
और आस रहित जीवन.

मैं अपनी चुप्पी से कहूँ
बाँधे अपना धीर
तुम सुनो पुकार कि आना एक बार.